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कश्मकश
झुकी नज़रें यूँ उठीं, क़यामत ने भी तौबा की, टपके जो उनकी पलकों से आंसूं, खुदा ने भी उन्हें थामने की गुस्ताखी ना की. रातों में पलके भीगा करती हैं, उन्हें याद करके आंसुओं में डूबा करती हैं, कभी बीते पल मुस्कुराहट दे जाते हैं लबों पर, तो कभी आंसूं के रूप में बह जाया…