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सुर

सुर

सुर (Transcription)

ग़ज़लों की छड़ी से खेला करते हैं वो,
हमारा ज़िक्र अपने नगमो में बिखेर दिया करते हैं वो,
नज़रें बचाकर सुरों को पिरो दिया तो क्या,
खामोश कलमा भी तो पढ़ा करते हैं वो|

किस्से-कहानियों को शहादत दे जाते हैं,
हँसी-ठिठोली में कोई एक पल याद दिला जाते हैं,
अपनी कहानी दुनिया को अजनबी बनके सुना जाते हैं,
गुम रास्तों में खामोश शोर छोड़ जाते हैं|

सुकून को सूफियाना अंदाज़ दे जाते हैं,
दिल को पिघलते जज़्बातों से छु जाते हैं,
तड़पते हैं हम किसी कि मोहब्बत के लिए,
और वो हैं, कि हमारी सिसकियों से भी इश्क़ कर जाते हैं|

नफरतों में पनपती इस दुनिया में,
मोहब्बत को चुनौती वो दिया करते हैं,
हमारी रूह आज़माकर खाली दिल टटोला करते हैं,
मरहूम सीने में अक्सर, वो ज़िन्दगी को खोजा करते हैं|

घबराकर नज़रें फिर हम मूँद लिया करते हैं,
एकाकी की चादर ओढ़ लिया करते हैं,
नादानी की इम्तिहान तब पर किया करते हैं,
जब सामने छुपी चाहत को नजरअंदार कर,
बदकिस्मती को हथेली में खोजा करते हैं|

मोहब्बत की तलाश में अब प्यार खो चुके हैं,
उनकी ख़ामोशी के कर्ज़दार बन चुके हैं,
वक़्त की ठोकर भी क्या लगी है दोस्तों,
कि उनके सुरों को हम आज लव्ज़ों में ढाल चुके हैं|

Background Music: Garden Music Kevin MacLeod (incompetech.com)
Licensed under Creative Commons: By Attribution 3.0 License
http://creativecommons.org/licenses/by/3.0/


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2 responses to “सुर”

  1. Advo. R.R.'SAGAR' Avatar
    Advo. R.R.’SAGAR’

    वैदेही सिंग जी आपके अल्फ़ाज़ और शायराना अंदाज़ बहुत खूब है,दिल को चू लेने वाली इस नज़्म के लिए वाकई आप बधाई की पात्र हैं!
    यूँ ही लिखते रहें गुनगुनाते रहें!
    Stay Happy Ma’am.

  2. शुक्रिया… ख़ुशी हुयी जानकार की आपको मेरी कविता पसंद आयी| 🙂

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