उम्र के हर पड़ाव पर एहसास को जन्म देने वाली,
सपनो के प्रतिबिम्ब को शब्दों से सजाने वाली,
साधारण व्यक्ति को उड़ान के सपने देने वाली,
कल्पनाओं को कागज़ पर बिखेर सत्य बनाने वाली,
हिन्दी ही तो थी …
अपनी तुलना अंग्रेजी से कर खुदको धुतकारनें वाली,
सबके बीच में अपना मज़ाक उड़वाकर भी,
अंग्रेजी की प्रशंसा करने वाली,
हर गलती में अपना रंग भरकर दोष-रहित करने वाली,
हिन्दी ही तो थी …
परीक्षा में ना पढ़ कर भी बच्चों को अव्वल लाने वाली,
कवि को ढूंढकर खुद से मिलाने वाली,
अनजान साधारण इंसान को पहचान दिलाने वाली,
हर विवाद में हँसकर कर पीछे हट जाने वाली,
हिन्दी ही तो थी …
उर्दू को कविताओं में घोलने वाली,
अंग्रेजी शब्दों में भी अपना अस्तित्व ना खोने वाली,
हर गलती को प्रेम से सही करने वाली,
ज़मीन से उठाकर मिट्टी की पहचान करने वाली,
हिन्दी ही तो थी …
तो एक कविता आज हिंदी के नाम,
बचपने में करी हर गलती के नाम,
नादान कहानियों को रूप देने के नाम,
हिंदी की महानता खुद को याद दिलाना के नाम… 🙂
P.S. This poem was first published on my Instagram as an image. Please find it here.
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