बेबाक मैं
अंत
बस तुझे ढूंढती हूँ
चाहत से भरी इन सर्द रातों में मैं तुझे ढूंढती हूँ,
आँखों से छलकती तेरी शरारती मुस्कान याद-कर हँसती हूँ|
किसी और के दुपट्टे में अपनी जन्नत खोजती हूँ,
तेरी ऊँगली से लिपटे धागे पलकों से गिरे मोती में पिरोती हूँ|
चाहत से भरी इन सर्द रातों में मैं तुझे ढूंढती हूँ… बस तुझे ढूंढती हूँ…
पन्नो पर बिखरी कुछ ज़िन्दगी
शोर और गुफ्तगू सब मिट से जाते हैं,
धुंधली पड़ जाती है ज़िंदा तसवीरें,
ख्यालों कि आँधी जब कुछ करवट लेती है,
कवि कि ज़िन्दगी तब कुछ पन्नो पर बिखरती है |
गुस्ताख़ी
वक़्त-ए-रफ़्तार को थामने की गुस्ताख़ी किस्मत ने क्या की,
कि अंजाम के रूबरू होने से पहले ही मंज़िल बदल दी |