बेबाक मैं
पन्नो पर बिखरी कुछ ज़िन्दगी
शोर और गुफ्तगू सब मिट से जाते हैं,
धुंधली पड़ जाती है ज़िंदा तसवीरें,
ख्यालों कि आँधी जब कुछ करवट लेती है,
कवि कि ज़िन्दगी तब कुछ पन्नो पर बिखरती है |
गुस्ताख़ी
वक़्त-ए-रफ़्तार को थामने की गुस्ताख़ी किस्मत ने क्या की,
कि अंजाम के रूबरू होने से पहले ही मंज़िल बदल दी |
खनक
वक़्त की गिरफ्त में जब कुछ आँधियां घिर जाती हैं,
महकती गलियां भी जब खिलखिलाते फूलों को याद करती हैं,
शांत सवेरे जब सन्नाटों कि गूँज में बदल जाते हैं,
तब कहीं, दिल टूटने की खनक दबा दी जाती है|
बदमाश धड़कनें
ऐ दिल! कुछ पल हमसे भी रूबरू हुआ करो,
बेचैन घड़ियों में साथ दिया करो,
तेरी बदमाश धड़कनें गुदगुदी किया करती हैं,
मेरे चंचल मन को सपने दिखाया करती हैं|
Inspired from The Daily Post