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स्याही
आप कहते हैं मैं लिखा करूँ, विचारों को चंद पन्नो पर बिखेरा करूँ, पर ये जो चीख मुझे रोज़ सुनाई देती है, भावनाओं को नम सा कर देती है, दिल को एड़ी से कुचला करती है, फिर व्यंग का रस घोलकर, स्याही का दर्द सन्नाटों में बयाँ करती है|
आप कहते हैं मैं लिखा करूँ, विचारों को चंद पन्नो पर बिखेरा करूँ, पर ये जो चीख मुझे रोज़ सुनाई देती है, भावनाओं को नम सा कर देती है, दिल को एड़ी से कुचला करती है, फिर व्यंग का रस घोलकर, स्याही का दर्द सन्नाटों में बयाँ करती है|