Transcription of ‘वक़्त के उस ओर’
उम्र काटी है मैंने किसी की राह तकते,
एक अनदेखा चहरा दूर खड़ा देखता है मुझे एक टक से,
करीब जाने से बोझल हो जाता है वो,
दूर खड़े फिर क्यों झलक दिखता है वो.
अँधेरी रातों में किरण सा लगता है वो,
मुस्कुराते खिल-खिलते मुझे देखता है वो,
शरारती नज़रें पलकों तले कुछ कह जाती हैं,
कान्हा सी मुस्कान मुझे राधा क्यों बना जाती हैं?
इतने पास है वो, फिर भी करीब नहीं,
नज़रों से छूकर भी छूता नहीं,
हाथ बढ़ता है जो थामने के लिए,
फिर खुद ही क्यों झटक देता है वो?
दुनिया उससे ढूढ़ती है मेरे लिए,
और वो है की रोज़ मुझे कहता है मैं बन हूँ तेरे लिए,
काले धागे की दीवार खड़ी है हमारे बीच,
लाल धुंध लेती है मुझे उससे खिंच,
उसके दूर होने की खनक सुनाई देती है मेरे कदमो तले,
तो क्या मंगलसूत्र, सिन्दूर, और पायल नहीं हैं हमारे बीच?
क्या सुहाग की ये निशानियाँ सवांरती हैं हमारा जीवन,
क्या येही इंतज़ार चाहता था मेरा मन?
लोग कहते हैं कहाँ छुपा है वो कठोर,
मेरे मन से पूछो, वो सामने है बस वक़्त के उस ओर.
Background Music Credit: incompetech
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