चल घर की सैर कराऊँ: Journey Of A Home (Transcription)
मैं अक्सर घर को याद करता हूँ,
वहाँ पहुँचने की खुद ही से फरियाद करता हूँ,
अब तो आँगन भी बुलाया करता है मुझे,
वो बेल का बूढ़ा पेड़, ख़्वाबों में रुलाया करता है मुझे,
अपनी साइकिल की घंटी सुनाई देती है मुझे,
माँ की डाँट आज भी डराती है मुझे|
आज भी अचार की बरनी से चोरी करने का मन करता है,
माँ के हाथों से कान खीचने में, आज भी तो दर्द होता है,
माँ रहती है मेरे साथ इस परायी नगरी में,
पर उसका दिल भी यहाँ कहाँ लगता है|
मुस्कुराती नज़रों से मेरे सपने आज भी देखती है वो,
हर सुबह बचपन की तरह मुझे खाना देती है वो,
कहती है तू जहाँ, वहाँ मेरा घर है बसा,
पर अपना होने का एहसास, उसे ये मकान कहाँ देता है|
वक़्त की इस दौड़ में अब सब कुछ छूट गया है,
अंधेरों में डूबा मेरा घर मुझसे ही रूठ गया है,
एक डोर खींचती है मुझे उसकी तरफ,
घर कहता है, मैं साथी था तेरा बचपन से अब तक,
आखिर तेरी यादों को मैंने ही तो सहेज के रखा है,
तू गुनहगार है मेरा, देखना तेरा अंत तुझे लाएगा मुझ तक|
माँ की नज़रें सब कुछ बयां करती हैं,
दर्द में झूठी ख़ुशी का इज़हार वो खुद ही तो करती हैं,
चल माँ, आज तुझे तेरे घर की सैर कराऊँ,
तेरी अचार की बरनी से, आज अचार फिर से चट कर जाऊँ,
एक बार फिर, क्यों न तुझसे फिर ज़िद्द कर जाऊँ,
हमें घर बुलाता है माँ,
चल, आज फिर तुझे घर की सैर कराऊँ … 🙂
Background Music Credit: incompetech
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very nicely written and orated!
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Thank you Ankur! 🙂
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