बेटी: Story of A Woman
मैं बेटी बनके आती हूँ बहु बनके जाती हूँ,
मेरी किलकारी बनती है चीख फिर भी चुप रह जाती हूँ,
बेटी से माँ का सफर एक पल में तय कर जाती हूँ,
तुम्हारे नाम को भी मैं अपना बना जाती हूँ|
अपने माँ-बाप को छोड़ तुम्हारे माँ-बाप को अपनाती हूँ,
उनकी सेवा कर अपना फ़र्ज़ निभाती हूँ,
उनके चरणो में अपना स्वर्ग ढूंढने जाती हूँ,
पर फिर भी अंत में, मैं ही बहु कहलाती हूँ|
झूले को छोड़, तेरा चूल्हा मैं जलती हूँ,
ज़मीन पर बिखरी ओढ़नी, अब सर पर लिए जाती हूँ,
सरक जाता है जो मेरा आँचल सर से, तो कुलटा मैं कहलाती हूँ,
अपने अंश को भी तेरा ही नाम दे जाती हूँ|
चूल्हे की जली रोटी पे माँ की सीख का ताना मैं सुनती हूँ,
हर पल अपनी जन्म-जननी को कलंकित भी मैं ही करती हूँ,
सुबकती बिलखती चुप भी खुद हो जाती हूँ,
पलकों में छुपी नींद में अपनी माँ का आँचल ढूंढा करती हूँ|
वो बचपन की हंसी को मैं हर पल खोजा करती हूँ,
अपनी बेटी को हँसते देख मैं अक्सर ये सोचा करती हूँ,
क्या इसकी हंसी भी, हंसी को ढूँढा करेगी?
क्या ये भी मेरी तरह अपनी माँ को ढूढ़ा करेगी?
तेरे बचपन को मैं ना खोने दूंगी,
तेरे साथ मैं ये अन्याय ना होने दूंगी,
तेरी पहचान तू खुद बनाएगी,
इस दुनिया को अपने परिवार के साथ तू ही तो चलाएगी|
तेरा जीवन दुनिया का मार्ग दर्शन होगा,
तेरा आँचल सबकी छाव बना करेगा,
तेरी रोटी सबको भाइयेगी,
तो तेरी हंसी सबको हंसाएगी|
अपने बच्चों को तू खुद ही पढ़ाएगी,
अपनी माँ पर ताने तू अब ना खायेगी,
अब तू आंसू ना बहाएगी,
तू ही बस, अब इस देश के हर एक घर को चलाएगी|
NOTE: You can now hear all my podcasts on my Soundcloud channel.
Background Music Credit: “Crossing the Divide” Kevin MacLeod (incompetech.com), Licensed under Creative Commons: By Attribution 3.0
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