Transcription of डोर (Valentine’s Day Special)
वो सर्द हवाओं का मौसम आया है,
घटाओं ने भी गीत गुनगुनाया है,
चांदनी रातों में तेरी छुअन की तपिश ने,
आज फिर एक तूफ़ान सा लाया है|
तूफ़ान की लड़ी के साथ दिन निकले हैं,
पर तेरी मुस्कुराहट गुलाब की महक में बिखरी है,
आज मेरे पँखों ने फिर उड़ान भरी है,
तेरी हँसी के साथ मेरी पायल भी झूमी है|
दीवानो की भरी इस महफ़िल में दिल तुझको याद करता है,
मोहब्बत का पैगाम तुझको देने की फ़रियाद करता है,
पर दुनिया की ज़ंजीरों ने हमको बांध लिया है,
तुझसे दूर न रहने के मेरे फैसले पर फतवाःजारी किया है|
धर्म के रखवालों को कोई ये समझाए,
कि मोहब्बत की ये डोर उन्ही के रब ने बनायी होगी,
उन्ही की इबादत के फूलों से ये डोर सजाई होगी,
उनकी हिस्से की दुआएं हमें लगायी होगी,
तभी तो ये फूलों की डोर इतनी मज़बूत बनायी होगी|
NOTE: This podcast (poem) is created for the audience of Vaidus World on the occasion of Valentine’s day. You can now hear all my podcasts (audio blogs) on my Soundcloud channel.
Audio Credit: “Gymnopedie No. 1” Kevin MacLeod (incompetech.com); Licensed under Creative Commons: By Attribution 3.0; http://creativecommons.org/licenses/by/3.0/
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