तक़दीर ने तो बस कदरदान कि मुस्कुराहट माँगी थी,
उनके अक्स को दिल में पनाह देने कि इजाज़त माँगी थी,
तालियों की गूँज तो सब सुनते हैं महफ़िल में,
हमने तो बस उन पलकों में कुछ जगह माँगी थी|

तक़दीर ने तो बस कदरदान कि मुस्कुराहट माँगी थी,
उनके अक्स को दिल में पनाह देने कि इजाज़त माँगी थी,
तालियों की गूँज तो सब सुनते हैं महफ़िल में,
हमने तो बस उन पलकों में कुछ जगह माँगी थी|
क्या बात है बहुत खूब वैदेही सिंग जी.!
लिखते रहें महफ़िल की शान लूटते रहें.!!
शुक्रिया 🙂
आपका स्वागत है
Wahhh kya baat !!!
Shukriya! 🙂
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