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महफ़िल

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तक़दीर ने तो बस कदरदान कि मुस्कुराहट माँगी थी,
उनके अक्स को दिल में पनाह देने कि इजाज़त माँगी थी,
तालियों की गूँज तो सब सुनते हैं महफ़िल में,
हमने तो बस उन पलकों में कुछ जगह माँगी थी|

5 responses to “महफ़िल”

  1. Advo. R.R.'SAGAR' Avatar
    Advo. R.R.’SAGAR’

    क्या बात है बहुत खूब वैदेही सिंग जी.!
    लिखते रहें महफ़िल की शान लूटते रहें.!!

    1. शुक्रिया 🙂

      1. Advo. R.R.'SAGAR' Avatar
        Advo. R.R.’SAGAR’

        आपका स्वागत है

  2. मृगजळblog Avatar
    मृगजळblog

    Wahhh kya baat !!!

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