जब इबादतों कि ताकत कहर बनकर गिरती है,
रक्त में घुलकर पसीने कि महक देती है,
तब किस्मत कि परियाँ भी घुटने टेक देती हैं|

जब इबादतों कि ताकत कहर बनकर गिरती है,
रक्त में घुलकर पसीने कि महक देती है,
तब किस्मत कि परियाँ भी घुटने टेक देती हैं|
और जिन्दगी एक लम्बी आह लेकर अपना दम तोड़ देती है …
‘खुद से किये हुए वादों को नयी ज़िन्दगी देती है|’
आपको नहीं लगता कि ये end ज़्यादा बेहतर है ? positive होना अच्छा होता है| हैं न? 🙂
बदकिस्मती का दौर जब ऐसे में उफान लेता है
इबादतों का कहर जिन्दगी को दोज़ख़ बना देता है
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