यह जीवन की विडम्बना है,
अंत को खोजना जैसे उसकी लालसा है,
हर पल अंत को पुकारा करती है,
सामने होने पर झुठलाया करती है|
जल्दी में रहा वो करती है,
दौड़ में अव्वल आती है,
तेज़ी रफ़्तार में उसके रहती है,
अंत को छूकर भी पछताती है|
पीछे जैसे कुछ छूट गया हो,
वक़्त से दिल हार गया हो,
अपनों को ढूँढा करती है,
हर पल कुछ अपने, पगली खो देती है|
यह जीवन की ही तो विडम्बना है,
कि पहला कदम ही अंत को खोजता है|
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