मोहब्बत नामुमकिन तो नहीं बस सब्र की मुहताज है,
इस उदास बेचैनी को तो बस उनकी आहट का इंतिज़ार है|
उफ़, ये खता (Shayari)
खामोश अल्फ़ाज़ों को सुनने कि ताकत हम में कहाँ,
ये खता तो अक्सर चुलबुली धड़कनें करती हैं|
मोहब्बत नामुमकिन तो नहीं बस सब्र की मुहताज है,
इस उदास बेचैनी को तो बस उनकी आहट का इंतिज़ार है|
खामोश अल्फ़ाज़ों को सुनने कि ताकत हम में कहाँ,
ये खता तो अक्सर चुलबुली धड़कनें करती हैं|