एक दिया जलाया था कहीं,
उम्मीद कि किरण बनाकर,
खाक कर दिया उसी दिए ने हमें,
अपनी ही लौ में जला कर|
रात के अंधेरों में डूब जाने का जी करता है,
दिन के उजाले में झूम जाने का जी करता है,
जब भी वो मिलते हैं ख़्वाबों में,
बस उनके ख्यालों में डूब जाने का जी करता है|
लोगों के साथ से डर लगता है,
अब तो अकेलापन ही अपना लगता है,
कोई नहीं देता है किसी का साथ,
ऐसे में भगवान से भी विश्वास उठने लगता है|
अंधकार को चीरती हुई एक किरण,
आसमान पर बादलों की चादर,
सुनसान सड़कों पर बारिश की बौछार,
क्या कल्पनाओ कि इस आहट को ही कहते हैं प्यार?
अंचूभा दर्द क्यों होता है दिल में,
एक काँटा सा चुभ जाता है रूह में,
मासूम सी हँसी खिल जाती है लबों पे,
जब उनकी मूरत बस जाती है मन में|
डर ने दिल को जो दस्तक दी,
ऑंखें छलक गयी,
आईना जो मुड़कर देखा,
तो उसमें मेरे ही डर कि झलक थी|
लोगों कि भीड़ में अकेलापन ढूंढना,
लाखों के शोर में सनाटे में रहना,
अँधेरे कमरे में उजाले कि किरण,
जैसे यमराज से एक सांस कि मैहर|
बचपन में सबका साथ अपना लगता था,
आँसूं जो गिरते तो माँ का सहारा होता था,
अब माँ का आँचल सुख सा गया है,
सर पे से हाथ जैसे उठ सा गया है|
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