दादी की सुनाई हुयी वो सपनो की कहानी,
चंदा मामा की लोरी वो माँ की ज़ुबानी,
बंद आंखें कर सपनो के बादलों को चेहरे पे महसूस करना,
अकेली रातों में चाँद से अपनी ख्वाहिश ज़ाहिर करना,
जैसे सब कुछ हमसे कहीं छुट गया,
जैसे कोई अपना हमसे रूठ गया।
निडर अपनी रह पर चले जा रहे थे,
अपने लक्ष्य को सामने रख उसके पीछे दौड़े जा रहे थे,
उम्मीद से एक हाथ को थमा करते थे,
दुसरे हाथ से रब का हाथ पकड़ लिया करते थे,
रब ने हमारा हाथ यूँ छोड़ा,
की उम्मीद ने भी हमें दुबारा मुड़कर न देखा।
लाखो की भीड़ में कल भी अकेले थे,
फिर भी सपनों का दमन थामे बड़े जा रहे थे,
लाखो की भीड़ में आज भी अकेले हैं,
पर आज न तो सपने हैं न उनके होने का एहसास।
आँखें भी सूख गयी हैं रोते रोते,
जैसे नदियाँ थक गयी हैं बहते बहते,
सपने देखना अगर गुनाह है तो,
ये गुनाह हमसे हुआ है,
दिल टूटना इसकी सजा है तो,
इससे हमने ज़िन्दगी भर के लिए कुबूल किया है।
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