
हम उन्हें याद नहीं ये भी तो गिला नहीं,
वक़्त की लौ में जले जा रहे हैं,
जल से दुश्मनी करे जा रहे हैं।
खुदा भी बुत बना देख रहा है,
झोली जो फैलाई तो हंस रहा है,
मुस्कान की एक झलक के लिए तरस रहे हैं,
हम तो नफरतों के सहारे जिए जा रहे हैं।
जीने की ख्वाहिश खत्म सी होने लगी है,
चलती हुयी ज़िन्दगी नम सी होने लगी है,
बचपन तो मेरा खो सा गया समझो,
बस उधर की ज़िन्दगी काट रहे हैं समझो।
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