
तब मुस्कुराती हवाएँ भी अपने साज़ गुनगुनाती हैं,
बदलते मौसम में ऋतु भी कुछ झूम के कहती हैं,
तब सौंधी मिट्टी की खुशबू भी एक रिश्ता कायम करती हैं,
गरजते मेघ दिल धड़का जाते हैं,
बेगानों को अपना बना जाते हैं,
दूरियाँ अब कम सी होती लगती हैं,
नज़र ना लग जाए इस बात से डरती हैं.
सपनो के इस महल में चहकती फिरती हूँ,
राजकुमारी बन खुद को निहारा करती हूँ,
आईना मुझसे मेरी पहचान करा जाता है,
जाने कैसे मेरी नज़रें झुका जाता है.
मूंदी आँखें जब अचानक खोला करती हूँ,
अपने आपको अकेला पाया करती हूँ,
खयालों के पंख भी अजीब होते हैं,
एक प्यारी मुस्कुराती उड़ान दे जाते हैं.
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