आज फिर लिखती हूँ,
आज फिर कलम को अपनी दास्ताँ सुनती हूँ,
दुनिया कहती है मैं किसी काम की नहीं,
मैं तो उनके इशारों की पुतली हूँ वही,
फिर भी इस दुनिया को जन्म देने वाली जननी हूँ मैं,
अपना अंश देकर इस दुनिया में लाने वाली नारी हूँ मैं।
आईने को यह बुत अंजना लगता है,
अपना होकर भी बेगाना दीखता है,
असमंजस में डालने वाले तुम ही तो हो,
मुझे इस मोड पे लाने वाले तुम ही तो हो।
तुम्हे पहचान देने वाली मैं ही तो थी,
तुम्हे चलना सीखने वाली मैं ही तो थी,
आज मेरे कदम जो लडखडाये,
तो उसकी वजह भी तुम ही तो हो,
आज मुझे गिरना सीखने वाले भी तुम ही तो हो,
पर मैं माँ हूँ, तुम्हे सदा अपनाऊंगी,
तेरी हर गलती को, सर माथे लगाउंगी।।
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